
टेक्नोलॉजी के बढ़ते दौर ने व्यक्ति में आलस्य भर दिया है। आज हमारे आसपास जितनी भी मशीन काम कर रही हैं, वह हमारे लिए एक दिन खतरे की घंटी साबित होंगी। दरअसल, इन मशीनों ने व्यक्ति का काम जरूर कम कर दिया हो लेकिन उससे मेहनत छीनकर बीमारियों की ओर धकेल दिया है। आज के समय में हर दूसरा व्यक्ति किसी ना किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित है। इस वक्त अगर किसी बीमारी को सबसे ज्यादा खतरनाक माना जाता है तो वो है कैंसर। आज के समय में कैंसर कोई बीमारी नहीं रह गई है बल्कि ये महामारी का रूप ले चुकी है। कैंसर इतनी खतरनाक बीमारी है जिसका नाम सुनते ही व्यक्ति सहम जाता है।
आज के समय में कैंसर के मामले में तेजी से इजाफा हो रहा है। हर साल करोड़ों लोग सिर्फ कैंसर जैसी घातक बीमारी के कारण अपनी जाएं गवां देते हैं। कैंसर होने के लिए हमारी लाइफस्टाइल, अनहेल्दी खान-पान जिम्मेदार होते हैं। कई बार जेनेटिक मामलों के कारण भी कैंसर हो जाता है। कैंसर किसी एक तरह का नहीं बल्कि कई तरह का होता है। हम आपको आज कार्सिनोमा कैंसर के बारे में बताएंगे। कार्सिनोमा कैंसर एक आम प्रकार का कैंसर होता है। आमतौर पर लोग कैंसर के इलाज के लिए एलोपैथी का सहारा लेते हैं। लेकिन आप घर बैठे कुछ आयुर्वेदिक दवाएं और जड़ीबूटियों का सेवन करके भी कैंसर जैसी गंभीर बीमारी को हरा सकते हैं। हम आपको आज कार्सिनोमा कैंसर क्या होता है, कार्सिनोमा कैंसर क्यों होता है, कार्सिनोमा कैंसर कितने प्रकार का होता है, कार्सिनोमा कैंसर के लक्षण क्या हैं, कार्सिनोमा कैंसर से बचाव के उपाय और कार्सिनोमा कैंसर के आयुर्वेदिक इलाज के बारे में बताऐंगे। ये सभी जानकारी पाने के लिए आप इस आर्टिकल को अंत तक पढ़ें।
कैंसर क्या और क्यों होता है?
हमारे शरीर में जो कोशिकाएं यानी सेल्स मौजूद होते हैं, उनमें ऐसे बदलाव आ जाते हैं, जो बाद में चलकर कैंसर का रूप ले लेते हैं। पहला बदलाव किसी भी कोशिका का अनियंत्रित होकर बढ़ना और दूसरा किसी ऑर्गन के सेल बहुत ज्यादा बढ़ते हुए अपनी जगह से दूसरी जगह तक फ़ैल जाना। इन दोनों स्थिति में कैंसर होता है।
कार्सिनोमा कैंसर क्या होता है?
सबसे पहले जानते हैं कि कार्सिनोमा होता क्या है। एसएससी यानी स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा (SCC) कार्सिनोमाटस कैंसर है, जो त्वचा, होंठ, मुंह, घेघा, मूत्राशय, प्रोस्टेट, फेफड़ों, योनि और गर्भाशय ग्रीवा सहित शरीर के अलग-अलग हिस्सों में हो सकता है। कार्सिनोमा उपकला कोशिकाओं में विकसित होता है। ये आपकी त्वचा और अंगों या फिर शारीरिक संरचनाओं के अस्तर को बनाता है। आसान भाषा में समझे तो ये उपकला कोशिकाएँ शरीर के आंतरिक और बाहरी दोनों तरफ की सतहों को ढंकती है।
कार्सिनोमा कैंसर क्यों होता है?
उम्र बढ़ने के साथ-साथ नाक का कैंसर का जोखिम बढ़ जाता है।
केमिकल के संपर्क में आने की वजह से कार्सिनोमा कैंसर हो सकता है।
सूर्य से निकलनेवाली UV किरणें स्किन कैंसर का मुख्य कारण होती हैं।
धूम्रपान करने वालों को कार्सिनोमा कैंसर होने की संभावना होती हैै।
लंबे समय या दीर्घकालिक सूजन कुछ प्रकार के कार्सिनोमा के विकास में सहायक हो सकते हैं।
कितने प्रकार का होता है कार्सिनोमा कैंसर?
आमतौर पर कार्सिनोमा कैंसर दो प्रकार का होता है। पहला बेसल-सेल कार्सिनोमा कैंसर और दूसरा स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा कैंसर। आइए इनके बारे में विस्तार से जानते हैं।
बेसल-सेल कार्सिनोमा
बेसल-सेल कार्सिनोमा एक सामान्य प्रकार का त्वचा कैंसर है। बेसल सेल कार्सिनोमा (बीसीसी) एक असामान्य, अनियंत्रित कोशिका वृद्धि है, जो त्वचा की सबसे बाहरी परत जिसे एपिडर्मिस कहते हैं, उसमें बेसल कोशिकाओं से उत्पन्न होती है। इसे सबसे ज्यादा गोरे रंग त्वचा वाले लोगों में देखा जाता है। बेसल-सेल कार्सिनोमा कैंसर उन त्वचा के उन हिस्सों पर विकसित होते हैं जो सबसे ज्यादा सूर्य के संपर्क में आते हैं, जैसे चेहरा, कंधे, कान, गर्दन, हाथ, खोपड़ी और पीठ आदि।
स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा
स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा त्वचा कैंसर का दूसरा सबसे प्रचलित प्रकार SCC है। यह स्क्वैमस कोशिकाओं में विकसित होता है, जिन्हें उपकला कोशिकाएँ भी कहते हैं। आमतौर पर ये कोशिकाएं त्वचा की बाहरी सतह के नीचे स्थित होती हैं। स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा सूर्य के संपर्क में आने वाले क्षेत्रों में भी होने का खतरा रहता है। साथ ही ये श्वसन और पाचन तंत्र में भी हो सकता है।
कार्सिनोमा कैंसर के लक्षण क्या हैं?
- चेहरे, गर्दन और कानों पर चिकना या मोम जैसा उभार।
- धड़ या बाहों और पैरों पर एक फ्लैट भूरे रंग का घाव।
- शरीर पर चोट के निशान
- गहरे और पपड़ीदार घाव
- कठोर गुलाबी या लाल गुत्थी
- ऊबड़-खाबड़, पपड़ीदार घाव के कारण खुजली
- रक्तस्राव
- आंत्र या मूत्राशय में बदलाव
- लगातार कब्ज या दस्त रहना
- पेशाब के साथ खून
- पेशाब में दर्द होना
- निगलने में दिक्कत होना
कार्सिनोमा कैंसर का आयुर्वेदिक इलाज क्या है?
आयुर्वेदिक इलाज पद्धति हजारों वर्षों से चली आ रही है। आयुर्वेद में हर बड़ी से बड़ी बीमारी का सफल इलाज बताया गया है। इसी तरह कैंसर जैसी घातक बीमारी का भी इलाज आयुर्वेद के पास मौजूद है। इन दिनों एलोपेथी इलाज के बढ़ने से लोग आयुर्वेदिक इलाज पर ध्यान ही नहीं दे रहे हैं। लेकिन आप ये बात नहीं जानते होंगे कि आयुर्वेदिक इलाज द्वारा बीमारी को जड़ से खत्म किया जाता है। हम आपको घर में मौजूद उन आयुर्वेदिक औषधियों के बारे में बता रहे हैं, जो कार्सिनोमा कैंसर को ठीक करने में मदद करेंगी।
नीम
नीम शरीर को स्वस्थ रखने में मदद करती है। इसमें कई ऐसे पोषण तत्व मौजूद होते हैं, जो ट्यूमर को ठीक करने की क्षमता रखते हैं। दरअसल, नीम मोनोसाइट्स की साइटोटोक्सिक क्षमता को बढ़ाता है और साथ ही ये ट्यूमर कोशिकाओं को बढ़ने से रोकता है।
हल्दी और तुलसी
हल्दी और तुलसी दोनों में ही कई चमत्कारी गुण होते हैं। आप शायद ही ये बात जानते होंगे कि इसमें कैंसर रोकने वाले महत्वपूर्ण एंटी इंफ्लेमेटरी तत्व भी पाए जाते हैं। डॉक्टर्स का भी दावा है कि तुलसी और हल्दी में मौजूद करक्यूमिन कैंसर को रोकने में मदद करते हैं।
गाजर
गाजर में बीटा कैरोटीन अधिक मात्रा में पाया जाता है। ये कैंसर विरोध माना जाता है। साथ ही गाजर में कई ऐसे एंटी-ऑक्सीडेंट पाए जाते हैं जो ओरल कैंसर के साथ ही और भी कई बीमारियों को खत्म करने में मदद करते हैं। गाजर में falcarinol नामक पदार्थ भी पाया जाता है तो कैंसर को दूर करने में मदद करता है।
अंगूर के बीज
काले अंगूर के बीज में कई ऐसे एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं, जो कैंसर से लड़ने में मदद करते हैं। ये एंटीऑक्सीडेंट ऐसे फ्री रेडिकल्स को खत्म करने में मदद करते हैं, जो मुंह में मौजूद सेल्स को नुक्सान पहुंचाते हैं।
अदरक
अदरक को औषधीय गुणों से भरपूर माना जाता है। इसमें कैंसर रोधी गुण होते हैं। कैंसर में होने वाली सूजन और दर्द से राहत दिलाने में अदरक का अर्क सबसे असरदार माना जाता है। साथ ही अदरक मतली और बेचैनी को भी कम कर देती है। आप इसमें सब्जी में डालकर या फिर कच्चा खा सकते हैं।
ग्रीन टी
ग्रीन टी शरीर को अनगिनत फ़ायदे पहुंचाती हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि, ग्रीन टी कैंसर के इलाज में भी कारगर साबित होती है। मुंह के कैंसर के मरीज यदि रोजाना इसका सेवन करेंगे तो इससे रोकथाम में काफी मदद मिल सकेगी।
करेले का जूस
करेले का जूस भी शरीर को ढेरों फायदे पहुंचाता है। इसका सबसे बड़ा फ़ायदा कैंसर को फैलने से रोकने में मदद करना है। दरअसल, करेले में अल्फा एलिस्टेरिक एसिड और dihydroxy alpha eleostearic एसिड मौजूद होते हैं। ये कैंसर कोशिकाओं को मारने में मदद करते हैं। रोजाना करेले के जूस का सेवन करने से गाल और मुंह के कैंसर से आप कोसो दूर रहेंगे।