क्या आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों से तालु के कैंसर का प्रभावी इलाज संभव है?

तालु का कैंसर

तालु का कैंसर मुंह के ऊपरी भाग या जीभ के ऊपरी हिस्से पर होने वाला कैंसर है। तालु का कैंसर मुंह के कैंसर का अपेक्षाकृत दुर्लभ रूप है। तालु का कैंसर मुंह के कैंसर की श्रेणी में आता है। तालु का कैंसर एक प्रकार का सिर और गर्दन का कैंसर ही है जो कि कैंसरों का एक बड़ा समूह है।

मुंह के कैंसर में होंठ, जीभ, गाल, मुंह का नीचे का हिस्सा, कठोर और नरम तालू, साइनस, और गले के कैंसर को शामिल किया जाता है। यदि इनका सही समय पर उपचार न किया जाए तो यह जानलेवा हो सकते हैं।

अगर आप नियमित रूप से मुंह का चेकअप करवाते हैं तो मुंह और तालु का कैंसर के शुरुआती चरणों में ही पकड़ आ जाएगा। महिलाओं की तुलना में पुरुषों को मुंह का कैंसर का जोखिम अधिक होता है। 50 वर्ष से अधिक उम्र के पुरुषों को इसका ज़्यादा जोखिम होता है। धूम्रपान और तम्बाकू का उपयोग मुंह एवं तालु का कैंसर का प्रमुख कारण है।

तालु का कैंसर के लक्षण या तालु की गांठ के कैंसर के लक्षण

तालु का कैंसर हो जाने पर निम्नलिखित लक्षण हो सकते हैं –

  • तालु पर गांठ का बन जाना और लम्बे समय तक ठीक नहीं होना।
  • मुंह का छाला जो अधिक समय तक बना रहता है।
  • मुंह में सफेद, लाल या धब्बेदार पैच होना।
  • चेहरे, गर्दन या मुंह पर घाव का होना और उनका ठीक न होना।
  • मुंह में दर्द या परेशानी जो ठीक नहीं हो।
  • अकारण बहुत वजन घटना।
  • होंठ, मसूड़ों या मुंह के अन्य क्षेत्रों में सूजन, गांठ, धब्बे, पपड़ी या कटाव का होना।
  • मुंह से बिना किसी वजह खून बहना
  • चेहरे, मुंह, गर्दन या कान के किसी भी क्षेत्र में बिना किसी वजह के स्तब्धता होना, कुछ महसूस न गले के पिछले हिस्से में
  • कुछ फसा हुआ महसूस होना।
  • चबाने, निगलने, बोलने एवं जबड़े या जीभ को हिलाने में कठिनाई।
  • घबराहट और आवाज में परिवर्तन।
  • कृत्रिम दांतों का ठीक से फिट न बैठना।
  • गर्दन में गांठ होना।

तालु का कैंसर के कैंसर के कारण – Causes of Mouth Cancer in Hindi

तालु का कैंसर तब होता है जब मुंह की कोशिकाओं के डीएनए में परिवर्तन होता है। परिर्वतन की वजह से असामान्य कोशिकाएं बढ़ती और विभाजित होती रहती हैं। असामान्य कोशिकाओं के एकत्र होने से मुंह में ट्यूमर बन जाता है। यह मुंह या तालु का कैंसर कहलाता है।

तालु का कैंसर होने के यह कारण बताए जाते हैं?

  • सिगरेट, सिगार, गुटखा एवं किसी भी प्रकार का तंबाकू का उपयोग।
  • अत्यधिक मात्रा में शराब का सेवन।
  • होठों पर सूरज या धूप का अधिक संपर्क
  • ह्यूमन पेपिलोमावायरस (एचपीवी) का संक्रमण आदि।

तालु का कैंसर से बचाव के उपाय

  • सिगरेट, बीड़ी या किसी भी तम्बाकू उत्पादों एवं शराब का सेवन नहीं करें।
  • अच्छा और संतुलित आहार खाएं।
  • धूप के संपर्क में आने से जितना हो सके उतना बचें
  • नियमित मुंह की सफाई करें।
  • समय समय पर डेन्टिस्ट से परामर्श अवश्य लें।
  • मुंह के छालों को नजरअंदाज नहीं करें।

तालु का कैंसर की जांच कैसे होती है?

तालु का कैंसर के निदान के लिए इस्तेमाल किये जाने वाली टेस्ट और प्रक्रियाएं निम्नलिखित हैं –

1. शारीरिक परिक्षण डॉक्टर या डेंटिस्ट असामान्यताएं जांचने के लिए होंठ और मुंह की जांच करेंगे।
2. बायोप्सी – अगर कोई संदिग्ध क्षेत्र पाया जाता है, तो डॉक्टर या डेंटिस्ट उधर से कोशिकाओं का एक नमूना निकाल कर बायोप्सी की सलाह दे सकते हैं।
3. अन्य – यदि बायोप्सी से रोगी को कैंसर की पुष्टि होती है कि आगे जांच की आवश्यकता होगी ताकि यह पता चल सके कि कैंसर किस चरण में है।

अन्य टेसट

  • एक्स-रे
  • अल्ट्रासाउंड स्कैन
  • एमआरआई स्कैन
  • कम्प्यूटरीकृत टोमोग्राफी स्कैन
  • पॉज़िट्रॉन एमिशन टोमोग्राफी स्कैन

तालु का कैंसर का इलाज – Mouth cancer in treatment in Hindi

तालु का कैंसर का इलाज कैंसर होने के स्थान और स्टेज पर निर्भर करता है। उपचार के विकल्प में सर्जरी, विकिरण, कीमोथेरेपी शामिल हैं। रोगी को इनमें से केवल एक या उससे ज्यादा विकल्पों की आवश्यकता हो सकती है। यह डॉक्टर के द्वारा तय किया जाता है कि रोगी के लिए क्या उचित रहेगा।

1. सर्जरी
2. विकिरण चिकित्सा (रेडिएशन थेरेपी)
3. कीमोथेरपी
4. अन्य उपचार जिसमें ड्रग थेरेपी आदि।

तालु के कैंसर का आयुर्वेदिक इलाज ?

हमारी भारतीय चिकित्सा पद्धति में किसी भी रोग के उपचार के लिए आयुर्वेद को विशेष महत्व दिया जाता है। आयुर्वेद में ऐसी कई जड़ी बुटियों और औषधियों के बारे में बताया गया है जो गंभीर रोगों के निदान में मददगार साबित हो सकती है।

तालु के कैंसर के लिए भी आयुर्वेदिक उपचार के रूप में विभिन्न औषधियों का प्रयोग किया जाता है। साथ ही प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली, आहार और व्यायाम भी कैंसर रोग के निदान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

आयुर्वेद में कुछ ऐसी जड़ी-बूटियाँ हैं, जो कैंसर के इलाज में मददगार हो सकती हैं। इनमें आमला, गुड़मार, गुडूची, अश्वगंधा, और त्रिफला आदि शामिल हैं। ये औषधियां रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ावा देने में मददगार है।

अमला: आमला में विटामिन सी की अधिक मात्रा होती है, जो तालु के कैंसर के खिलाफ लड़ने में मदद कर सकता है।

गोखरू: गोखरू को आयुर्वेद में कैंसर के इलाज के लिए उपयोगी माना जाता है। इसे कैंसर के उपचार में उपयोग किया जा सकता है।

गिलोय: गिलोय का सेवन तालु के कैंसर के इलाज में मदद कर सकता है। गिलोय में कई प्रकार के गुण होते हैं जो कैंसर के खिलाफ लड़ने में मदद कर सकते हैं।

त्रिफला: त्रिफला का सेवन भी तालु के कैंसर के इलाज में किया जा सकता है। इसमें विटामिन सी और अन्य पोषक तत्व होते हैं जो शरीर को मजबूत बनाए रखने में मदद कर सकते हैं।

प्राकृतिक आहार : आयुर्वेद में रोगों के निदान के लिए प्राकृतिक आहार की बड़ी भूमिका होती है।
प्राकृतिक खाद्य पदार्थों का सेवन, कैंसर परिणामकारी पदार्थों से परहेज़ और प्रतिरोधक तंत्र को बढ़ावा देने वाले खाद्य पदार्थों के सेवन की भी आयुर्वेद में सलाह दी जाती है।

प्राणायाम और योग: प्राणायाम और योग शरीर को संतुलित करने में मदद करते हैं, जो कैंसर के इलाज में भी सहायक हो सकता है।

कृपया ध्यान दें कि ये सुझाव केवल आम सूचना के लिए हैं और किसी भी आयुर्वेदिक उपचार को शुरू करने से पहले एक प्रमाणित आयुर्वेदिक डॉक्टर या वैद्य से परामर्श अवश्य करें।

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